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ताकि बना रहे लाइफ में हॉर्मोंस का बैलेंस

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ताकि बना रहे लाइफ में हॉर्मोंस का बैलेंस

हमारे शरीर में कुल 230 तरह के हॉर्मोंस होते हैं, जो शरीर में अलग-अलग कामों को कंट्रोल करते हैं। हॉर्मोन की छोटी-सी मात्रा ही कोशिका के काम करने के तरीके को बदलने के लिए काफी है। दरअसल, यह एक केमिकल मेसेंजर की तरह एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक सिग्नल पहुंचाते हैं। एक गलत मेसेज आपकी लाइफ का बैलेंस बिगाड़ सकता है, खुद को कैसे बचाएं इस समस्या से, एक्सपर्ट्स की मदद से हम बता रहे हैं आपको…
क्या है हॉर्मोन
हार्मोंस हमारी बॉडी में मौजूद कोशिकाओं और ग्रन्थियों में से निकलने वाले केमिकल्स होते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्से में मौजूद कोशिकाओं या ग्रन्थियों पर असर डालते हैं। इन हार्मोंस का सीधा असर हमारे मेटाबॉलिज्म, इम्यून सिस्टम, रिप्रॉडक्टिव सिस्टम, शरीर के डिवेलपमेंट और मूड पर पड़ता है।
हॉर्मोन असंतुलन का मतलब
हमारी बॉडी में हर तरह के हॉर्मोन का अलग-अलग रोल होता है। किसी भी तरह के हॉर्मोन का तय से ज्यादा या कम मात्रा में निकलने को हॉर्मोन असंतुलन कहा जाता है। वैसे तो पुरुषों और महिलाओं दोनों में ही कई तरह के हॉर्मोंस पाए जाते हैं, लेकिन कुछ का असर सीधे रोजमर्रा के जीवन पर पड़ता है।
पुरुषों में हॉर्मोंस
1.एंड्रोजेन
इस हॉर्मोन का मुख्य काम पुरुषों में दाढ़ी आना, सेक्सुअल लाइफ, अग्रेसिव बिहेवियर, मसल्स बनाने जैसे शारीरिक और मानसिक बदलावों के लिए जिम्मेदार होता है।
असंतुलित होने पर
बॉडी में यह हॉर्मोन कम होने पर मसल्स बनने में कमी, स्पर्म बनने में कमी, कमजोरी, चिड़चिड़ापन, अपोजिट सेक्स के प्रति रुचि में कमी और इन्फर्टिलिटी जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
2.इंसुलिन
इसका मुख्य काम बॉडी में ग्लूकोज के लेवल को कंट्रोल करना है। यह ब्लड में ग्लूकोज को बढ़ने से रोकता है। हमारी बॉडी में ग्लूकोज की नॉर्मल मात्रा फास्टिंग में 70-100 तक और नॉन फास्टिंग में 140 ग्राम/डेसीलीटर तक होनी चाहिए।
असंतुलित होने पर
ब्लड में इंसुलिन कम होने पर ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है इसका असर बॉडी के करीब सभी ऑर्गन्स पर पड़ता है। इसके असंतुलन से घाव जल्दी नहीं भरते। हाथ-पैरों में दर्द रहना शुरू हो जाता है। जल्दी-जल्दी पेशाब आना, वजन घटना, भूख का काफी कम हो जाना आदि इसके लक्षण हैं।
3.थायरॉयड
यह हमारे गले में मौजूद एक ग्रंथि का नाम है। इससे निकलने वाले हॉर्मोन को थायरॉयड हॉर्मोन कहते हैं, जिनके नाम हैं T3, T4, TSH। TSH हमारे दिमाग में मौजूद पिट्यूट्री ग्लैंड से निकलता है, जिसका काम T3 और T4 को कंट्रोल करना होता है। यह हॉर्मोन हमारी बॉडी की ग्रोथ रेग्युलेट करता है।
असंतुलित होने पर
इस हॉर्मोन के असंतुलित होने से दिमागी विकास धीमा हो जाता है। बच्चे में इस हॉर्मोन के असंतुलित होने पर विकास धीमा हो जाता है यानी जो काम बच्चा तीन महीने की उम्र में करने लगता है, वह 10 महीने में करता है । बड़ों में पांव फूलना, वजन बढ़ना, नॉर्मल तापमान में ठंड लगना जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
4.पैराथायरॉयड
यह भी गले में मौजूद होती है और इसका काम हमारी बॉडी में कैल्शियम के लेवल को कंट्रोल करने का होता है।
असंतुलित होने पर
हड्डियां कमजोर हो जाएंगी। यह बूढ़े लोगों में ज्यादा होता है।
5.इपाइनेफ्राइन या एड्रेनेलिन
इसे ‘फाइट ऑर फ्लाइट’ हॉर्मोन भी कहा जाता है। यह बॉडी में रिजर्व एनर्जी की तरह होता है। इसका काम अचानक आ जाने वाली परेशानी को हैंडल करने की ताकत देना होता है। यह शरीर में मौजूद मिनरल्स को मेनटेन करता है।
असंतुलित होने पर
इसके कुछ केस में मौत होने तक की आशंका रहती है। एड्रेनेलिन फेल्योर की कंडिशन में बीपी तेजी से गिरता है। हालांकि ऐसे केस कम ही देखने को मिलते हैं।
महिलाओं में हॉर्मोंस
1.थायरॉयड
ज्यादातर महिलाओं में थायरॉयड हॉर्मोन के असंतुलन के कारण बीमारियां होती है। यह हमारी बॉडी में मौजूद एक ग्रंथि का नाम है।
असंतुलित होने पर
इस हॉर्मोन के असंतुलन का सबसे ज्यादा असर उनकी फर्टिलिटी (बच्चे पैदा करने की क्षमता) पर पड़ता है।
2.एस्ट्रोजेन और प्रॉजेस्ट्रॉन
ये दोनों ही सेक्स हॉर्मोन होते हैं, जो महिलाओं में फर्टिलिटी से जुड़े होते हैं। एस्ट्रोजेन का काम हड्डियों को मजबूत करना भी होता है। महिलाओं में मिनोपॉज के बाद हड्डियां का कमजोर हो जाने की वजह भी एस्ट्रोजेन की कमी ही होती है। इसके लिए डॉक्टर उन्हें कैल्शियम की गोलियां खाने को देते हैं। वहीं पॉजेस्ट्रॉन का काम महिलाओं में पीरियड्स के साइकल को सही रखना और पहले तीन महीने में मां के गर्भ में बच्चे के बढ़ने में मदद करना होता है।
असंतुलन होने पर
मेंसेस साइकल में गड़बड़ी होना, ज्यादा ब्लीडिंग होना। कभी-कभी महीने में तीन या चार बार ब्लीडिंग होना जैसी समस्याएं होती हैं। उम्र बढ़ने पर बच्चे पैदा करने में दिक्कत आने जैसी परेशानी हो सकती है।
3.इंसुलिन
इसका मुख्य काम बॉडी में ग्लूकोज के लेवल को कंट्रोल करना है। महिलाओं में भी ग्लूकोज की नॉर्मल मात्रा फास्टिंग में 70-100 और नॉन फास्टिंग में 140 ग्राम/डेसीलीटर होती हैं।
असंतुलित होने पर
पुरुषों जैसी समस्याएं ही होने लगती हैं।
क्यों होता है असंतुलन
– महिलाओं में हॉर्मोंस असंतुलित होने के कई कारण हैं : खराब लाइफस्टाइल, न्यूट्रिशन की कमी, एक्सरसाइज न करना, तनाव, पीसीओडी, थायरॉइड, ओवेरियन फेलियर आदि।
– लोग मानते हैं कि हॉर्मोन असंतुलन मेनोपॉज के बाद होता है, जबकि यह पूरी तरह गलत है। कई महिलाएं सारी उम्र हॉर्मोन असंतुलन से परेशान रहती हैं।
– जीवनशैली और खानपान से जुड़ी आदतों में बदलाव के कारण महिलाएं हॉर्मोन असंतुलन की शिकार पहले की तुलना में अब ज्यादा हो रही हैं।
– जंक फूड और दूसरे खाद्य पदार्थों में कैलरी की मात्रा तो बहुत ज्यादा होती है लेकिन पोषक तत्वों की मात्रा काफी कम होती है। इससे शरीर को जरूरी विटामिन, मिनरल, प्रोटीन और दूसरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।
– कॉफी, चाय, चॉकलेट और सॉफ्ट ड्रिंक आदि के ज्यादा सेवन के कारण भी कई महिलाओं की एड्रिनलीन ग्रंथि ज्यादा सक्रिय हो जाती है, जो हर्मोन के स्राव को प्रभावित करती है। – गर्भनिरोधक गोलियां भी हॉर्मोन के स्राव को प्रभावित करती हैं।
ये हैं बैलेंस बिगड़ने के लक्षण
महिलाओं में हर महीने फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन बनता है।जब इन हॉर्मोंस के संतुलन में गड़बड़ी होती है तो महिलाओं में हेल्थ से जुड़ी बहुत-सी समस्याएं पनपने लगती हैं, जिनके लक्षण हैं :
– पीरियड्स अनियमित होना
– वजन बढ़ना
– इनफर्टिलिटी
– मूड स्विंग होना
– ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की परेशानियां)

यूटराइन फायब्रॉइड, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन
– स्किन से जुड़ी समस्याएं जैसे कील-मुंहासे आदि
– बालों का गिरना, फेशियल हेयर ग्रोथ
– डिप्रेशन, थकान, चिड़चिड़ापन,कमजोरी होना
– सेक्स इच्छा में कमी आदि
– भूख न लगना
– सही से नींद न आना
– ध्यान केंद्रित करने में समस्या
– अचानक वजन बढ़ जाना
बचाव ही बेहतर
हॉर्मोंस को बैलेंस रखने के 3 सबसे आसान उपाय हैं : वजन कंट्रोल में रखना, तनावरहित रहना और सही डाइट लेना। इसके अलावा भी कुछ जरूरी बातें हैं।
– हल्का भोजन करें, खासकर रात को सोने से पहले।
– ताजा और पौष्टिक भोजन ही खाएं।
– हरी सब्जियों, ताजे फलों और दालों को खाने में जरूर शामिल करें।
– पेट साफ रखें।
– 7-8 घंटे की नींद लें। नींद पूरी या सही से नींद न लेने पर भी बॉडी में हॉर्मोंन असंतुलन की समस्या हो जाती है।
– मन को हल्का रखें। खुश रहें और दिन में तीन से चार बार जोर-जोर से हंसें।
– सुबह या शाम के वक्त 25 से 30 मिनट की वॉक करें। पार्क में कुछ वक्त गुजारें
– चाहे तो पूरे दिन में एक टाइम (सुबह या शाम) वॉक करें और दूसरे वक्त योगासन का पूरा पैकेज करें।
– संतुलित, कम फैट वाले और ज्यादा रेशेदार भोजन का सेवन करें।
– ओमेगा-3 और ओमेगा-6 युक्त भोजन हॉर्मोन संतुलन में सहायक है। यह सूरजमुखी के बीजों, अंडे, सूखे मेवों और चिकन में पाया जाता है
– शरीर में पानी की कमी न होने दें।
– रोज 7-8 घंटे की नींद लें।
– चाय, कॉफी, शराब के सेवन से बचें।
– पीरियड्स से जुड़ी गड़बड़ियों को गंभीरता से लें।
– हॉर्मोंस को संतुलित रखने के लिए विटामिन डी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए थोड़ी देर धूप में जरूर रहें।
डाइट का रोल
पौष्टिक तत्वों से भरपूर खानपान जहां एक तरफ हॉर्मोंस को संतुलित रखते हैं वहीं, दूसरी ओर रोगों से लड़ने की ताकत को भी बढ़ाते हैं।
क्या खाएं
– ताजे फल, सब्जियां, ड्राईफ्रूट्स (8-10 बादाम और 1-2 अखरोट रात भर पानी में भिगो कर) खाने में शामिल करें।
– अपनी डाइट में ज्यादा-से-ज्यादा ओमेगा 3 फैटी एसिड (ऑलिव ऑयल, फ्लैक्स सीड, नारियल का तेल और फिश) शामिल करें।
– नींबू, संतरा (विटामिन सी) चने की दाल और राजमा, बाजरा, ज्वार, मक्का, रागी, पालक, सरसों का साग, गुड़ और भुने चने आदि खाने से नेचरल तरीके से हॉर्मोंस को संतुलित रखने में मदद मिलती है।
– केला, नाशपाती और सेब जैसे फलों को डाइट का हिस्सा बनाएं।
-9-10 गिलास पानी पिएं, पानी शरीर में मौजूद टॉक्सिंस को बाहर निकालने में मदद करता है।
-हर्बल टी लेना अच्छा ऑप्शन हो सकता है।
– विटामिन डी के लिए टोंड मिल्क, योगर्ट, मशरूम खाएं।
– ब्रोकली, फूलगोभी, पत्तागोभी और सरसों का साग खूब खाएं। इससे भी हॉर्मोंस संतुलित रहते हैं।
क्या न खाएं
– ऑइली फूड, जंक फूड, सॉफ्ट ड्रिंक, मैदा, वेजिटेबल ऑयल, सोया प्रॉडक्ट्स, स्टेरॉयड और ज्यदा एंटीबायोटिक लेने से हॉर्मोंस असंतुलित हो जाते हैं।
– ओमेगा 6, पॉलीअनसैचुरेटेड फैट्स जैसे वेजिटेबल ऑयल, मूंगफली का तेल, कनोला ऑयल, सोयाबीन का तेल आदि खाने से बचें।
– ज्यादा चाय, कॉफी, अल्कोहल और चॉकलेट आदि कैफीन मिली हुई चीजें खाने से बचें।
– पनीर, दूध से बनी और मीट जैसी फैट वाली चीजें कम लें।
इलाज से होगी मुश्किल आसान
अलोपथी में इलाज
पेशंट की उम्र और उसकी बॉडी में होने वाले हॉर्मोन असंतुलन, उससे होने वाली बीमारी के लक्षणों को पहचानकर ही दवाइयां दी जाती हैं।
होम्योपथी में इलाज
चाहे महिला पेशंट हो या पुरुष, पहले देखा जाता है कि किस तरह का और कौन-सा हॉर्मोन असंतुलित है। हॉर्मोन के असंतुलन की समस्या होने पर डॉक्टर की सलाह पर ली जाने वाली कुछ कॉमन दवाइयां हैं :
– PULSATILLA-30 : 5-5 गोली दिन में तीन बार, एक महीने तक।
– SPIA-30 : 5-5 गोली दिन में तीन बार, दो हफ्ते तक।
– SULPHUR-30 : 5-5 गोली दिन में तीन बार, दो हफ्ते तक।
योग से इलाज
हमारे शरीर की बहुत सी चीजें मन से जुड़ी होती हैं। अगर आपकी बॉडी में हॉर्मोंस असंतुलित होने पर योग के इस पैकेज को करें।
– कपालभाति
– कटिचक्रासन (लेटकर)
– पवनमुक्तासन
– भुजंगासन और धनुरासन
– मंडूकासन
– पश्चिमोत्तान आसन
– अनुलोम-विलोम प्राणायाम
– उज्जायी प्राणायाम
– धीरे-धीरे भस्त्रिका प्राणायाम
– ध्यान
– शवासन
आयुर्वेद में इलाज
पुरुषों के लिए
– अश्वगंधा चूर्ण 1 चम्मच रात में खाना खाने के आधा घंटे बाद दूध और मिस्री से लें।
– अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर में अश्वगंधारिष्ट और अमृतारिष्ट 3-3 चम्मच खाने के बाद दिन में दो बार 1 कप गुनगुने दूध के साथ पीने से पुरुष हॉर्मोन बैलेंस रहते हैं।
महिलाओं के लिए
-अशोकारिष्ट 2-2 चम्मच दिन में दो बार लेने से पीरियड नियमित रहते हैं। शतावरी चूर्ण महिलाओं में दूध को बढ़ाता है।
– साल में तीन महीने अशोकारिष्ट और दशमूलारिष्ट 3-3 चम्मच बराबर पानी के साथ खाने के 2 घंटे बाद दिन में दो बार लें। गर्भावस्था में इसे न लें।
नोट : इनमें से कोई एक दवा ही डॉक्टर की सलाह पर लें। योग पैकेज को सुबह खाली पेट करें और शाम के वक्त करना है तो डिनर से पहले करें। रोजाना आधा घंटा इस पैकेज को एक्सपर्ट की मदद से करें।


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